चीन ने फिर बचाया मसूद अजहर को, किया अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल, क्या है वीटो पावर जानिए

पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मसूद अजहर एक बार फिर वैश्विक आतंकी घोषित होने से बच गया है. उसे बचाने वाले चीन ने भारत की कोशिश को चौथी बार विफल किया है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के चार स्थायी सदस्यों अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस ने उसे वैश्विक आतंकी घोषित करने की राह में भारत का समर्थन किया था. जबकि चीन हमेशा से ही इसका विरोध करता आया है. चीन ने जिस वीटो का इस्तेमाल करके आतंकी मसूद अजहर को बचाया है, चलिए जानते हैं उसकी ताकत.

क्या है वीटो?
वीटो, लैटिन भाषा के शब्द वीटे (Veto) से बना है. जिसका मतलब है किसी चीज की अनुमति ना देना. जैसा कि चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में किया है. इस शक्ति का इस्तेमाल प्राचीन रोम में किया जाता था. वहां कुछ निर्वाचित अधिकारियों के पास ये शक्ति थी, जिसकी मदद से वे रोम सरकार की किसी भी कार्रवाई को रोक सकते थे. उस वक्त इसका इस्तेमाल किसी चीज को रोकने के लिए किया जाता था.

किन देशों के पास है वीटो पावर?
वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्यों के पास वीटो की शक्ति है. ये पांच देश चीन, फ्रांस, अमेरिका, रूस और ब्रिटेन हैं. वीटो पावर किसी भी फैसले में बेहद अहम भूमिका निभाता है. अगर इन सभी सदस्यों में से कोई एक सदस्य भी किसी फैसले पर रोक लगा दे तो उस फैसले को ही रोक दिया जाता है.

ठीक यही चीज मसूद अजहर के मामले में भी हुई है. उसे वैश्विक आतंकी घोषित करने के लिए परिषद के चार देशों ने भारत का समर्थन किया जबकि चीन ने इस फैसले का विरोध किया.

क्यों कुछ देशों पास है यह पावर?
क्रीमिया, यूक्रेन के शहर याल्टा में फरवरी, 1945 को एक सम्मेलन हुआ. जिसे याल्टा सम्मेलन या क्रीमिया सम्मेलन भी कहा जाता है. जिसमें सोवियत संघ के तत्कालीन प्रधानमंत्री जोसफ स्टालिन ने वीटो पावर का प्रस्ताव रखा था. युद्ध के बाद की योजना बनाने के लिए ये सम्मेलन हुआ था. जिसमें ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल, सोवियत संघ के प्रधानमंत्री जोसफ स्टालिन और अमेरिका के राष्ट्रपति डी. रूजवेल्ट ने हिस्सा लिया. वैसे माना जाता है कि वीटो का कॉन्सेप्ट 1920 में ही आ गया था. तब लीग काउंसिल के स्थायी और अस्थायी सदस्य दोनों के पास वीटो था.

कब पहली बार हुआ इस्तेमाल?
पहली बार वीटो पावर का इस्तेमाल 16 फरवरी, 1946 को सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ (यूएसएसआर) ने किया था. यूएसएसआर ने सीरिया और लेबनान से विदेशी सैनिकों की वापसी के प्रस्ताव पर वीटो किया था.

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